बिहार बनाम उत्तर प्रदेश : 1947 से अब तक बिहारियों को कोई ढंग का मंत्रालय ही नहीं मिला

उत्तर प्रदेश ने दिए एक से एक महान नेता, जबकि बिहार जगजीवन राम के बाद प्रभावी नेतृत्व देने में रहा विफल

उत्तर प्रदेश और बिहार, दोनों ही राज्य भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभाते आए हैं। लेकिन जब देश को महान नेताओं और प्रभावशाली हस्तियों देने की बात आती है, तो उत्तर प्रदेश का योगदान कहीं ज्यादा प्रभावशाली और व्यापक दिखता है। उत्तर प्रदेश ने देश को कई प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, और प्रभावशाली राजनेता दिए हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। वहीं, बिहार, जो कभी शिक्षा और राजनीति का केंद्र माना जाता था, जगजीवन राम के अलावा कोई भी ऐसा नेता नहीं दे पाया, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर स्थायी प्रभाव छोड़ा हो।देश के चार महत्वपूर्ण मंत्रालय वित्त , रक्षा , गृह ओर विदेश बिहार के नेता को न बराबर ही नसीब हुआ 

उत्तर प्रदेश का योगदान:

उत्तर प्रदेश भारतीय राजनीति का गढ़ रहा है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान समय तक, इस राज्य ने देश को कई बड़े नेता दिए हैं, जिनमें शामिल हैं:

 

जवाहरलाल नेहरू:
  • प्रधानमंत्री: भारत के पहले प्रधानमंत्री, जिन्होंने 1947 से 1964 तक सेवा दी।
लाल बहादुर शास्त्री:
  • प्रधानमंत्री: 1964 से 1966 तक प्रधानमंत्री रहे।
  • गृह मंत्री: प्रधानमंत्री बनने से पहले गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।
 
इंदिरा गांधी:
  • प्रधानमंत्री: तीन बार प्रधानमंत्री रहीं – 1966-1977 और 1980-1984।
चरण सिंह:
  • प्रधानमंत्री: 1979 से 1980 तक प्रधानमंत्री रहे।
  • उप प्रधानमंत्री: प्रधानमंत्री बनने से पहले उप प्रधानमंत्री का पद संभाला।
  • वित्त मंत्री: अपने कार्यकाल के दौरान वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
विश्वनाथ प्रताप सिंह:
  • प्रधानमंत्री: 1989 से 1990 तक प्रधानमंत्री रहे।
  • रक्षा मंत्री: प्रधानमंत्री बनने से पहले रक्षा मंत्री रहे।
  • वित्त मंत्री: प्रधानमंत्री बनने से पहले वित्त मंत्री के रूप में भी सेवा दी।
चंद्रशेखर:
  • प्रधानमंत्री: 1990 से 1991 तक प्रधानमंत्री रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी:
  • प्रधानमंत्री: तीन बार प्रधानमंत्री रहे – 1996 में संक्षिप्त अवधि के लिए और 1998 से 2004 तक।
  • विदेश मंत्री: 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया।
मुलायम सिंह यादव:
  • रक्षा मंत्री: 1996 से 1998 तक रक्षा मंत्री रहे।
राजनाथ सिंह:
  • गृह मंत्री: 2019 से गृह मंत्री के रूप में कार्यरत।
  • रक्षा मंत्री: 2014 से 2019 तक रक्षा मंत्री रहे।
हेमवती नंदन बहुगुणा:
  • वित्त मंत्री: 1979 में वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।
नारायण दत्त तिवारी:
  • वित्त मंत्री: 1986 से 1987 तक वित्त मंत्री रहे।
चिंतामणि पाणिग्रही:
  • गृह मंत्री: 1986 से 1989 तक गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।
दिनेश सिंह:
  • विदेश मंत्री: 1969 से 1970 और फिर 1993 से 1995 तक विदेश मंत्री रहे।
सलमान खुर्शीद:
    • विदेश मंत्री: 2012 से 2014 तक विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश से देश को कई उपप्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और अन्य महत्वपूर्ण मंत्री भी मिले हैं, जिन्होंने नीतिगत फैसलों में अहम भूमिका निभाई है।

बिहार:

जगजीवन राम:

रक्षा मंत्री: 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान रक्षा मंत्री रहे। उप प्रधानमंत्री: 1979 में संक्षिप्त अवधि के लिए उप प्रधानमंत्री का पद संभाला।

श्याम नंदन प्रसाद मिश्रा:

विदेश मंत्री: विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया।

राम सुभाग सिंह:

गृह मंत्री: भारत के गृह मंत्री के रूप में सेवा दी।

बिहार की कमजोर स्थिति:

बिहार, जो कभी नालंदा और तक्षशिला जैसी महान शिक्षण संस्थाओं का केंद्र था, राजनीति में पीछे क्यों रह गया? इस सवाल का जवाब बिहार की राजनीतिक अस्थिरता, जातिवाद और नेतृत्व की कमी में छिपा है। बिहार ने भी कई नेता दिए, लेकिन वे राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव छोड़ने में विफल रहे।लालू प्रसाद यादव – 15 वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनका कार्यकाल बिहार में प्रशासनिक विफलता और भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता है। नीतीश कुमार – बिहार के विकास के कुछ प्रयास किए, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उनका प्रभाव सीमित ही रहा। रामविलास पासवान – विभिन्न सरकारों में मंत्री रहे, लेकिन बिहार को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में असफल रहे।

बिहार क्यों पीछे रह गया?

  1. दिशाहीन नेतृत्व – बिहार के नेताओं के पास राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की कोई दीर्घकालिक योजना नहीं रही।
  2. जातिवाद की राजनीति – उत्तर प्रदेश ने जातिवाद को काफी हद तक दरकिनार कर विकास पर ध्यान देना शुरू किया, जबकि बिहार अभी भी इसी दलदल में फंसा है।
  3. विकास की अनदेखी – उत्तर प्रदेश में लखनऊ, नोएडा, वाराणसी, कानपुर जैसे शहर विकसित हुए, लेकिन बिहार में कोई भी ऐसा शहर नहीं है जो राष्ट्रीय स्तर पर उद्योग और व्यापार में अपनी पहचान बना सके।
  4. शिक्षा और रोजगार में गिरावट – बिहार में उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसर सीमित होने के कारण युवाओं का पलायन जारी है।

बिहार को सुधार की जरूरत:

यदि बिहार को उत्तर प्रदेश की तरह प्रभावशाली राज्य बनना है, तो उसे कुछ बड़े बदलाव करने होंगे:

  1. मजबूत नेतृत्व – बिहार को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर विकास की राजनीति करें।
  2. औद्योगीकरण को बढ़ावा – बिहार को औद्योगिक हब के रूप में विकसित करना होगा, जिससे रोजगार के नए अवसर बनें।
  3. शिक्षा प्रणाली में सुधार – बिहार के शैक्षणिक संस्थानों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने योग्य बनाना होगा।
  4. बुनियादी ढांचे का विकास – सड़क, बिजली, पानी और इंटरनेट जैसी मूलभूत सुविधाओं में सुधार लाना होगा।
  5. नागरिक भागीदारी – बिहार के नागरिकों को भी अपनी सोच बदलनी होगी और विकास पर आधारित राजनीति को समर्थन देना होगा।

निष्कर्ष:

उत्तर प्रदेश ने जहां एक से एक महान नेता दिए, जिन्होंने देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं बिहार अपनी खोखली राजनीति और सीमित नेतृत्व क्षमता के कारण पिछड़ता गया। यदि बिहार को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान मजबूत करनी है, तो उसे मजबूत नेतृत्व, शिक्षा और औद्योगीकरण पर ध्यान देना होगा, जिससे वह भी उत्तर प्रदेश की तरह देश की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभा सके।